पार्श्व एकादशी 2025: भगवान विष्णु की कृपा से पाएं आध्यात्मिक शुद्धि, पाप मुक्ति और अनंत सुख!

Muskan
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आज का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि आज पार्श्व एकादशी का पवित्र व्रत मनाया जा रहा है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को समर्पित यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है। लाखों श्रद्धालु आज उपवास रखकर आध्यात्मिक शुद्धि और पुण्य प्राप्ति की कामना कर रहे हैं। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। अगर आप भी पार्श्व एकादशी 2025 के बारे में जानना चाहते हैं, तो आइए विस्तार से समझते हैं इसकी तिथि, महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि और पारण समय को।


पार्श्व एकादशी 2025 की तिथि और मुहूर्त

पार्श्व एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी या वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, इस वर्ष बुधवार, 3 सितंबर 2025 को मनाई जा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एकादशी तिथि का प्रारंभ 3 सितंबर को सुबह 3:53 बजे से हो रहा है और यह 4 सितंबर को सुबह 4:22 बजे तक रहेगी। हरि वासर का समापन 4 सितंबर को सुबह 10:19 बजे होगा, जिसके बाद पारण किया जा सकता है। आईएसकेओएन के अनुसार, पारण का समय 4 सितंबर को सुबह 10:18 बजे से है। श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि स्थानीय पंचांग के अनुसार मुहूर्त की पुष्टि करें, ताकि व्रत का पूर्ण लाभ मिल सके।


पार्श्व एकादशी का महत्व: परिवर्तन और शुभता का प्रतीक

पार्श्व एकादशी का नाम 'पार्श्व' या 'परिवर्तिनी' इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं। चातुर्मास में सोए हुए विष्णु जी इस एकादशी पर दाएं से बाएं करवट लेते हैं, जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का संकेत देता है। यह व्रत भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है और आध्यात्मिक शुद्धि, पुण्य प्राप्ति तथा पाप नाश के लिए रखा जाता है। हिंदू मान्यताओं में, इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में बाधाएं दूर होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, यह व्रत धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख की कामना करने वालों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।


पार्श्व एकादशी व्रत कथा: राजा बलि और वामन अवतार की रोचक कहानी

पार्श्व एकादशी की व्रत कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में, दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और बलि से तीन पग भूमि दान मांगी। पहले पग में उन्होंने पृथ्वी, दूसरे में आकाश और तीसरे में बलि का सिर नाप लिया। इस प्रकार, बलि को पाताल लोक भेजा गया, लेकिन उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उन्हें वरदान दिया। इस कथा को सुनने और पढ़ने से व्रत का फल दोगुना हो जाता है। श्रद्धालु शाम को कथा सुनकर भगवान की आरती करते हैं, जो आत्मिक शांति प्रदान करती है।


पूजा विधि और व्रत नियम: सरल तरीके से रखें उपवास

पार्श्व एकादशी का व्रत रखना सरल है, लेकिन नियमों का पालन आवश्यक है। यहां जानिए पूजा विधि और नियम:


व्रत नियम: व्रत एक दिन पहले दशमी तिथि से शुरू होता है। चावल, दालें और नमक से परहेज करें। फलाहार या निराहार व्रत रखें। रात्रि जागरण में भजन-कीर्तन करें।

पूजा विधि: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। विष्णु जी की मूर्ति या चित्र के सामने धूप, दीप, फूल, फल और तुलसी पत्र अर्पित करें। 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। शाम को कथा सुनें और आरती करें।

पारण विधि: अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद पारण करें। ब्राह्मणों को दान दें और फलाहार से व्रत तोड़ें।


इन नियमों का पालन करने से व्रत सफल होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।


पार्श्व एकादशी के लाभ: जीवन में लाएं सकारात्मक बदलाव

इस व्रत को रखने से पापों का नाश होता है, स्वास्थ्य में सुधार आता है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। ज्योतिषियों के अनुसार, यह एकादशी जीवन के नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक दिशा में मोड़ने की शक्ति प्रदान करती है। विशेष रूप से, व्यापारियों और छात्रों के लिए यह व्रत सफलता का द्वार खोलता है।


आज के इस पवित्र दिन पर, सभी श्रद्धालु भगवान विष्णु से प्रार्थना करें कि उनका जीवन सुखमय बने। पार्श्व एकादशी 2025 की शुभकामनाएं! अधिक जानकारी के लिए स्थानीय पंडित से संपर्क करें या ज्योतिष ऐप्स का सहारा लें।

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